पूर्व पुरस्कृताएं

इकत्तीसवाँ पुरस्कार | 2024

पुरस्कृता: श्रीमती वीना उपाध्याय

पटना, बिहार

मुख्य अतिथि: माननीय श्री सी. पी. राधाकृष्णन – महाराष्ट्र के राज्यपाल

अध्यक्ष: श्रीमती ज्योति दोशी

इकत्तीसवाँ  पुरस्कार | 2024

श्रीमती वीना उपाध्याय ‘सृजनी फ़ाउंडेशन’ और ‘Bun.Kar Bihar’ की संस्थापक सचिव और मुख्य कार्यकारी हैं। उन्होंने वंचित महिलाओं को साक्षरता, वित्तीय सशक्तिकरण और कारीगरी आधारित रोज़गार से आत्मनिर्भर बनाया है।

उन्होंने ‘सुलभ इंटरनेशनल’ के अंतर्गत ‘सृजनी’ की शुरुआत की और बाद में ‘Bun.Kar Bihar’ की स्थापना की, जो आज बिहार के 150 बुनकर परिवारों और 500 से अधिक कारीगरों को सहारा देता है।

उनके प्रयासों से ‘बावनबूटी’ जैसे लुप्त बुनाई शिल्पों का पुनर्जीवन हुआ है। उन्होंने स्कूल यूनिफ़ॉर्म में हथकरघा वस्त्रों का समावेश किया और महिलाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें ऐसे वस्त्र बनाने योग्य बनाया जो पहले अंतरराष्ट्रीय ब्रांडों से आयात होते थे।

देश-विदेश में प्रदर्शित हो चुके उनके कार्य, रचनात्मकता, सशक्तिकरण और सतत परिवर्तन की जीवंत प्रतीक हैं।

वेबसाइट: https://srijanifoundation.com

तीसवाँ पुरस्कार | 2023

पुरस्कृता: श्रीमती राजीबेन वंकर

भुज, गुजरात

मुख्य अतिथि: सुश्री दिया मिर्ज़ा

अध्यक्ष: डॉ. अशोक खोसला

तीसवाँ पुरस्कार | 2023

कच्छ के बीचों बीच , जहाँ परंपरा और नवाचार साथ चलते हैं, श्रीमती राजीबेन वंकर ने कारीगरी और स्थायित्व की नई परिभाषा गढ़ी है। ‘राजीबेन – क्राफ्टिंग ए बेटर प्लैनेट’ की संस्थापक के रूप में, वह प्लास्टिक कचरे को आकर्षक बैग, टोकरी और इस प्रकार की अन्य चीज़ों में बदलती हैं।

राजीबेन कच्छ में एक महिला-स्वामित्व वाली संस्था का नेतृत्व करती हैं, जो 50 से अधिक पर्यावरण-अनुकूल डिज़ाइन तैयार करती है और स्थानीय महिलाओं का, आजीविका के अवसर देकर, सशक्तिकरण करती हैं ।

उनकी कहानी दृढ़ता, रचनात्मकता और हरित भविष्य के संकल्प की मिसाल है — यह दर्शाती है कि परंपरा और पर्यावरण साथ मिलकर उज्जवल भविष्य बुन सकते हैं।

वेबसाइट: https://navchetana.org.in

उन्तीसवाँ पुरस्कार | 2022

पुरस्कृता: श्रीमती मनीषा घुले

बीड़, महाराष्ट्र

मुख्य अतिथि: श्रीमती फाल्गुनी नायर

अध्यक्ष: श्रीमती रोमा सिंघानिया

उन्तीसवाँ  पुरस्कार | 2022

श्रीमती मनीषा घुले ‘नवचेतना सर्वांगीण विकास केंद्र’ की कार्यकारी निदेशक हैं। वह हाशिए पर खड़ी ग्रामीण महिलाओं को सम्मानजनक रोज़गार देकर महाराष्ट्र के सामाजिक और कृषि तंत्र को नया रूप दे रही हैं।

उन्होंने सतत रोज़गार का एक ऐसा मॉडल तैयार किया जिसमें ग्रामीण महिलाएँ आर्थिक और सामाजिक विकास की मुख्य धारा में आती हैं, विशेष रूप से उन जगहों पर जहाँ वे जलवायु परिवर्तन, पलायन, और बेरोज़गारी प्रभावित हैं।

‘नवचेतना महिला अर्बन निधि लि.’ और ‘नवचेतना भरारी महिला उद्योग समूह’ के माध्यम से उन्होंने 300 गाँवों में महिलाओं को सुक्ष्म वित्त, शिक्षा और उद्यमिता के अवसर दिए हैं।

वेबसाइट: https://navchetana.org.in

अट्ठाईसवाँ पुरस्कार | 2020

पुरस्कृता: सुश्री दुर्गा मल्लू गुड़ीलू (कोविड योद्धा)

मुंबई

मुख्य अतिथि: श्री शेखर बजाज

अध्यक्ष: श्रीमती निशरीन खोराकीवाला

अट्ठाईसवाँ पुरस्कार | 2020

सुश्री दुर्गा मल्लू गुड़ीलू ‘अनुम फ़ाउंडेशन’ की ट्रस्टी और वैदू समुदाय के तीन लाख लोगों की सरपंच हैं। मुंबई के जोगेश्वरी पूर्व की झोपड़पट्टी में पली-बढ़ीं, उन्होंने अपना जीवन सामाजिक सेवा को समर्पित किया।

वे कम शिक्षित घुमंतू वैदू समुदाय से हैं और पहली शिक्षित सदस्या बनीं। 2015 में उन्होंने ‘महाराष्ट्र वैदू विकास समिति’ की स्थापना की जो शिक्षा, पोषण और महिला सशक्तिकरण के लिए कार्यरत है।

कोविड-19 महामारी के दौरान उन्होंने समुदाय के लिए भोजन, आवश्यक सामग्री और सैनिटरी पैड की व्यवस्था की और ‘मेरा सपना’ नामक अध्ययन वृत्त शुरू किया ताकि बच्चे ऑनलाइन डिजिटल शिक्षा की चुनौती का सामना कर सकें।

सत्ताईसवाँ पुरस्कार | 2019

पुरस्कृता: श्रीमती रूमा देवी

बाड़मेर, राजस्थान

मुख्य अतिथि: श्री प्रसून जोशी

अध्यक्ष: श्रीमती वनिता भंडारी

सत्ताईसवाँ  पुरस्कार | 2019

श्रीमती रूमा देवी ‘ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान’ (GVCS) की अध्यक्ष हैं। यह संस्था राजस्थान की महिलाओं और वंचित समुदायों के जीवन-स्तर उठाने के लिए समर्पित है और महिलाओं के लिए रोज़गार निर्माण पर कार्य करती है।

वेबसाइट: www.rumadevi.com

छब्बीसवाँ पुरस्कार | 2018

पुरस्कृता: श्रीमती पवित्रा वाई. सुंदरेशन

बेंगलुरु

मुख्य अतिथि: श्री मिलिंद सोमन

अध्यक्ष: श्रीमती मोहना नायर

छब्बीसवाँ  पुरस्कार | 2018

श्रीमती पवित्रा वाई. सुंदरेशन ‘विंध्य ई-इन्फोमीडिया’ की संस्थापक और प्रबंध निदेशक हैं। 2006 में बेंगलुरु से शुरू यह बीपीओ संस्था समावेशी रोज़गार के संकल्प के साथ काम कर रही है।

‘विंध्य’ संस्था ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों और विकलांग व्यक्तियों को रोज़गार देती है। 1,600 कर्मचारियों में 62% विकलांग और 58% महिलाएँ हैं — यह सामाजिक उद्यम और सम्मानजनक रोज़गार का उदाहरण है।

वे विधवाओं, तलाकशुदा और विकलांग महिलाओं को प्रशिक्षण व उचित वेतन देकर आत्मनिर्भर बनाती हैं। वह दूसरे और तीसरे स्तर के शहरों में रोज़गार मेला लगाकर गाँवों तक रोज़गार के अवसर ले जाती हैं।

वेबसाइट: www.vindhyainfo.com

पच्चीसवाँ पुरस्कार | 2017
गुंडरदेही, छत्तीसगढ़

पुरस्कृता: श्रीमती शमशाद बेगम

गुंडरदेही, छत्तीसगढ़

मुख्य अतिथि: सुश्री विनीता बाली

अध्यक्ष: श्रीमती नयनतारा जैन

पच्चीसवाँ  पुरस्कार | 2017

श्रीमती शमशाद बेगम ‘सहयोगी जनकल्याण समिति’ की संस्थापक अध्यक्ष हैं और छत्तीसगढ़ की ग्रामीण महिलाओं में साक्षरता की अग्रदूत रही हैं। राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के माध्यम से उन्होंने केवल छह महीनों में 12,000 महिलाओं को पढ़ना-लिखना सिखाया।

उन्होंने अवैध भूमि कब्ज़ों के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी, शराब की दुकानें बंद कराईं और बालोद ज़िले में 1,041 स्वयं-सहायता समूह स्थापित किए। नाबार्ड के साथ साझेदारी में उन्होंने महिलाओं को प्रशिक्षण और बैंक सुविधाओं से जोड़ने का कार्य किया।

2006 में उन्होंने 100 महिलाओं की ‘महिला कमांडो’ टुकड़ी बनाई, जो घरेलू हिंसा के ख़िलाफ़ लड़ती है। 2012 में उन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया। उनका जीवन साहस और समुदाय नेतृत्व की मिसाल है।

वेबसाइट: www.padmashrishamshadbegum.com

चौबीसवाँ पुरस्कार | 2016

पुरस्कृता: श्रीमती पबीबेन रबारी

कच्छ, गुजरात

मुख्य अतिथि: श्री आदित्य पुरी

विशिष्ट अतिथि: श्रीमती तारा शर्मा सलूजा

अध्यक्ष: श्रीमती राधिका नाथ

चौबीसवाँ  पुरस्कार | 2016

श्रीमती पबीबेन रबारी कच्छ की हैं और अपने समाज की प्रसिद्ध कढ़ाई कला को नई ऊँचाई पर ले गई हैं। उनका लक्ष्य महिला कारीगरों के लिए ऐसा व्यवसायिक मॉडल बनाना है जो रचनात्मकता, आत्म-सम्मान और आत्मनिर्भरता को बढ़ाए।

1998 में रबारी समाज की महिलाओं से जुड़कर वह एक सिद्धहस्त कढ़ाई -कारीगर हो गईं और ‘पबी जरी’ तकनीक से ‘पबी बैग’ बनाया – जो आज हॉलीवुड और बॉलीवुड फिल्मों में भी दिखाई देता है।

उन्होंने भद्रोई गाँव में ‘Pabiben.com’ की स्थापना की, जो हर उम्र की महिलाओं को रोज़गार देता है। उनका काम गाँधीवादी ग्राम विकास का प्रेरक उदाहरण है, जो स्थानीय ज्ञान और परंपरा को संरक्षित रखता है।
वेबसाइट: www.pabiben.com

वेबसाइट: www.pabiben.com

तेईसवाँ पुरस्कार | 2015
चौबीस परगना, पश्चिम बंगाल

पुरस्कृता: श्रीमती काना मोंडल

चौबीस परगना, पश्चिम बंगाल

मुख्य अतिथि: श्रीमती अनीता डोंगरे

अध्यक्ष: श्रीमती शालिनी पीरामल

तेईसवाँ पुरस्कार | 2015

श्रीमती काना मोंडल पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाकों की महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई और जूट उत्पादों के लघु उद्यमों के माध्यम से आत्मनिर्भर बना रही हैं। छह महीनों का प्रशिक्षण पूरा करने के बाद उन्होंने छोटा ऋण लेकर ‘फ़ातिमा कांथा स्टिच सेंटर’ स्थापित किया और आस-पास की महिलाओं को प्रशिक्षित किया।

उन्होंने अपने कार्य को विस्तारित कर विभिन्न प्रदर्शनियों में भाग लिया। बाद में जूट डाइवर्सिफ़ाइड प्रोडक्ट्स (JDP) का प्रशिक्षण शुरू किया और 2012 में उनकी संस्था ‘हस्त उद्योग’ एक पंजीकृत व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र बन गई।

तकनीकी संस्थाओं से साझेदारी करते हुए उन्होंने अनेक महिलाओं को प्रशिक्षित किया ताकि वे अपने सूक्ष्म उद्यम स्थापित कर सम्मानजनक रोज़गार प्राप्त कर सकें।

वेबसाइट: www.hastaudyog.com

बाईसवां पुरस्कार | 2014

पुरस्कृता: श्रीमती कृष्णा बिष्ट

उत्तराखंड

मुख्य अतिथि: श्रीमती प्रिया दत्त

अध्यक्ष: श्रीमती आरती सांघी

बाईसवां पुरस्कार | 2014

श्रीमती कृष्णा बिष्ट ने अल्मोड़ा में ‘महिला हाट’ की स्थापना की। यह संस्था 45 स्वयं-सहायता समूहों के माध्यम से हाशिये पर बैठी कारीगरों का कौशल प्रशिक्षण, बाजार-फैलाव, व एकजुटता के द्वारा सशक्तिकरण करती है।

संस्था कम लागत पर आधुनिक बुनाई का प्रशिक्षण देती है। कृष्णा बिष्ट ने माता-पिता को लड़कियों की शिक्षा के लिए प्रेरित किया और अल्मोड़ा में ‘शिक्षा संसाधन केंद्र’ नामक पुस्तकालय स्थापित किया।

उन्होंने बिहार, तमिलनाडु, नागालैंड और उत्तरांचल में भी महिला कारीगरों को संगठित कर उन्हें आर्थिक गरिमा दिलाने का कार्य किया।

वेबसाइट: www.mahilahaat.org

इक्कीसवाँ पुरस्कार | 2013

पुरस्कृता: श्रीमती थिनलस चोरोल

लद्दाख

मुख्य अतिथि: श्रीमती रोहिणी निलेकनी

अध्यक्ष: श्रीमती लीना वैद्य

इक्कीसवाँ पुरस्कार | 2013

श्रीमती थिनलस चोरोल लद्दाख के टकमाचिक गाँव की दूरदर्शी महिला हैं जिन्होंने 2009 में ‘लद्दाखी वीमेंस ट्रैवल कंपनी’ की स्थापना की – लद्दाख की पहली महिला-संचालित यात्रा संस्था जो महिला सशक्तिकरण और पर्यावरण-अनुकूल पर्यटन को बढ़ावा देती हैं।

वह महिलाओं को निःशुल्क प्रशिक्षण देती हैं ताकि लद्दाख के पर्यटन क्षेत्र में उनकी भागीदारी बढ़े, साथ ही वह ‘होमस्टे’ को प्रोत्साहन देती हैं जिससे स्थानीय परिवारों की आय वृद्धि हो, सांस्कृतिक आदान प्रदान हो, और पर्यटकों के कारण पर्यावरण पर हुआ दुष्प्रभाव घटे।थिनलस लद्दाख की पहली महिला ट्रेक गाइड्स में से हैं और ट्रेकिंग से प्राप्त आय से संस्था को स्वयं चलाती हैं।

वेबसाइट: www.ladakhiwomenstravel.com

बीसवाँ पुरस्कार | 2012

पुरस्कृता: श्रीमती जोसेफ़िन सेल्वराज

वडिपट्टी, तमिलनाडु

मुख्य अतिथि: श्री जरसन दा-कुन्हा

विशिष्ट अतिथि: सुश्री नंदिता दास

अध्यक्ष: सुश्री दर्शना एम. दोशी

बीसवाँ  पुरस्कार | 2012

श्रीमती जोसेफ़िन सेल्वराज, वडिपट्टी तालुका (मदुरै) की ‘विबिस नेचुरल बी फ़ार्म’ की संस्थापक हैं। उन्होंने मधुमक्खी पालन को आधार बनाकर ग्रामीण महिलाओं को उद्यमिता और आत्मनिर्भरता की दिशा दी।

2007 में ‘नेशनल हनी मिशन’ से प्राप्त एक बड़े आदेश ने उन्हें 300 महिलाओं के लिए मधुमक्खी फार्म स्थापित करने में सक्षम बनाया। तब से वह लगभग 20,000 लोगों को नि:शुल्क प्रशिक्षण दे चुकी हैं।

‘वडिपट्टी की फ़्लोरेंस नाइटिंगेल’ कही जाने वाली श्रीमती सेल्वराज ने कॉलेजों और अरविंद अस्पताल में भी मधुमक्खी पालन शुरू कराया ताकि गरीब कैंसर रोगियों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़े। उनके द्वारा बनाए गए 24 शहद-आधारित उत्पाद और शहद की 89 किस्में अनेक जीवनों में मिठास भर रही हैं।

वेबसाइट: www.vibishoneybee.com

उन्नीसवां पुरस्कार | 2011

पुरस्कृता: श्रीमती रश्मि भारती

कुमाऊँ, उत्तराखंड

मुख्य अतिथि: श्रीमती रजनी बक्शी

विशिष्ट अतिथि: श्री मकरंद देशपांडे

अध्यक्ष: श्रीमती भावना दोशी

उन्नीसवां   पुरस्कार | 2011

श्रीमती रश्मि भारती ‘कुमाऊँ अर्थक्राफ्ट सेल्फ रिलायंट कोऑपरेटिव लि.’ की संस्थापक एवं अध्यक्षा हैं और पिछले दो दशकों से उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र के ग्रामीण विकास के प्रति समर्पित हैं।

वे 1997 में स्थापित ‘अवनी’ संस्था की संस्थापक सचिव भी हैं। उन्होंने 2005 में ‘अर्थक्राफ्ट’ सहकारी की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य हिमालयी पारंपरिक कारीगरी को जीवित रखते हुए रोज़गार के अवसर बनाना है। ‘अवनी’ आज 101 गाँवों में कार्यरत है और 20,000 से अधिक लोगों के जीवन को प्रभावित कर रही है।

‘अर्थक्राफ्ट’ में प्राकृतिक रंगों से रंगे रेशम और ऊन के वस्त्र बनाए जाते हैं, जिससे 1,100 से अधिक परिवारों को आजीविका मिली है। इसके पर्यावरण-अनुकूल उत्पादों को गुणवत्ता और स्थायित्व के लिए यूनेस्को का ‘Seal of Excellence’ प्राप्त हुआ है।

वेबसाइट: www.avani-earthcraft.com

अट्ठारहवाँ पुरस्कार | 2010

पुरस्कृता: श्रीमती अनीता पॉल

रानीखेत, उत्तराखंड

मुख्य अतिथि: श्रीमती ज़िया मोदी

अध्यक्ष: डॉ. स्मिता डांडेकर

अट्ठारहवाँ  पुरस्कार | 2010

श्रीमती अनीता पॉल ‘पैन हिमालयन ग्रासरूट्स डेवलपमेंट फाउंडेशन’ की निदेशक हैं और ‘उमंग’ संस्था की प्रेरक शक्ति हैं, जो दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्रों की महिला उत्पादकों का जीवन संवार रहीं हैं।

‘उमंग’ संस्था पर्यावरण, समानता और अर्थव्यवस्था पर आधारित सूक्ष्म उद्यमों को बढ़ावा देती है। उनके नेतृत्व में ‘महिला उमंग प्रोड्यूसर्स कंपनी लि.’ से जुड़ी 1,300 से अधिक महिलाएँ ‘हिमखाद्य’ और ‘कुमाऊनी’ जैसे ब्रांडों के अंतर्गत उत्पाद तैयार करती हैं, जो अब फैब इंडिया जैसे प्रतिष्ठित स्टोर्स में बिकते हैं।

ये महिलाएँ छत की टाइलें, ऊनी वस्त्र, फल संरक्षित उत्पाद, शहद और मसाले तैयार करती हैं — जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था, शिक्षा और समुदायिक विकास में गहरा परिवर्तन आया है।

वेबसाइट: www.umang-himalaya.com

सत्रहवाँ पुरस्कार | 2009

पुरस्कृता: श्रीमती पुष्पा चोपड़ा

पटना, बिहार

मुख्य अतिथि: माननीया श्रीमती प्रभा राव

अध्यक्ष: श्रीमती शीला कृपलानी

सत्रहवाँ पुरस्कार | 2009

श्रीमती पुष्पा चोपड़ा ने 1996 में पटना में ‘बिहार महिला उद्योग संघ’ की स्थापना की, जो राज्य भर की महिला उद्यमियों का सर्वोच्च मंच है और स्वरोज़गार तथा आर्थिक स्वावलंबन को बढ़ावा देता है।

उन्होंने पारंपरिक कला और हस्तकला को संरक्षित करते हुए 25,000 से अधिक ग्रामीण महिलाओं को हस्तकला, परिधान और खाद्य निर्माण का प्रशिक्षण दिया, जिससे उन्हें स्थायी रोज़गार मिले।

श्रीमती पुष्पा चोपड़ा ने बिहार चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स की पहली महिला सदस्य बनकर इतिहास रच दिया।

वेबसाइट: www.biharmahilaudyogsangh.com

सोलहवां पुरस्कार | 2008

पुरस्कृता: श्रीमती मल्लम्मा यलावर

बीजापुर, कर्नाटक

मुख्य अतिथि: श्रीमती जया जैटली

अध्यक्ष: श्रीमती सुरभि तन्ना

सोलहवां पुरस्कार | 2008

श्रीमती मल्लम्मा यलावर ने 1986 में ‘सबला’ संस्था की स्थापना की और सिंदगी, बीजापुर तथा बगेवाड़ी के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के सशक्तिकरण का अभियान चलाया। उनके नेतृत्व में ‘सबला’ संस्था आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और शैक्षणिक विकास के माध्यम से वंचित समुदायों को सशक्त बना रही है।

संस्था ने लंबानी समुदाय की हस्तकला को पुनर्जीवित किया, स्वयं-सहायता समूह बनाए, महिला सहकारी बैंक स्थापित किए और शिक्षा, आवास योजनाएँ तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए।

श्रीमती यलावर विभिन्न सरकारी समितियों की सदस्या हैं और ‘फेयर ट्रेड फोरम इंडिया’ के मुख्य बोर्ड में शामिल हैं। वह न्यायपूर्ण व्यापार और नैतिक व्यवसाय के सिद्धांतों की सच्ची पक्षधर हैं।

वेबसाइट: www.sabalaindia.org

पन्द्रहवां पुरस्कार | 2007

पुरस्कृता: श्रीमती शैला अरविंद अमृते

दापोली, महाराष्ट्र

मुख्य अतिथि: डॉ. वंदना शिवा

अध्यक्ष: श्रीमती मीनल बजाज

पन्द्रहवां पुरस्कार | 2007

श्रीमती शैला अमृते ने रत्नागिरी के दापोली गाँव को नर्सरी गाँव में परिवर्तित कर दिया। शहर का जीवन छोड़कर उन्होंने जैविक खेती, नवीन पौध रोपण तकनीक और खाद्य प्रसंस्करण को गाँव में लागू किया। उन्होंने कृषि कोर्स कर अपने ज्ञान को बढ़ाया और ‘उत्कर्ष महिला मंडल’ के माध्यम से महिलाओं की समस्याओं का समाधान किया।

प्राकृतिक संसाधनों के सदुपयोग और अपशिष्ट प्रबंधन पर ध्यान देते हुए उन्होंने गाँवों को उद्यमिता की ओर प्रेरित किया। उनके दशकों के निष्ठापूर्वक कार्य से रत्नागिरी, रायगढ़ और ठाणे ज़िलों की लगभग 5000 महिलाओं का जीवनस्तर सुधरा।

उन्होंने कम लागत वाले पॉलीहाउस निर्माण, सस्ती सिंचाई तकनीक और जैविक अपशिष्ट प्रबंधन जैसे नवाचार किए। उनका कार्य ग्रामीण समाज में आत्मबोध, आंतरिक बल और प्रगति की प्रेरणा देता है।

वेबसाइट: www.nisargasahavas.com

चौदहवां पुरस्कार | 2006

पुरस्कृता: श्रीमती हिरबाईबेन लोबी

जम्बूर, गुजरात

मुख्य अतिथि: श्रीमती जया बच्चन

अध्यक्ष: श्रीमती मुनीरा चुडासमा

चौदहवां पुरस्कार | 2006

श्रीमती हिरबाईबेन लोबी, गुजरात के जम्बूर गाँव की सिद्दी समुदाय से हैं। उन्होंने गाँव की महिलाओं, विशेष रूप से सिद्दी समाज की महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए जो कार्य किया, उससे वे अनौपचारिक रूप से गाँव की सरपंच बन गईं।

उन्होंने आदिवासी समुदाय को प्रेरित किया और महिलाओं के समूह बनवाए जो शिक्षा, स्वास्थ्य, बचत, ऋण और आयवर्धक कार्यों जैसे जैविक खाद निर्माण और पशुपालन में सक्रिय हैं।

हिरबाईबेन ने जम्बूर में एक डे-केयर केंद्र और विद्यालय स्थापित किया, जहाँ बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा दी जाती है।

उन्होंने सरकारी विभागों के साथ संवाद कर कई योजनाओं में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की। उनके इस योगदान के लिए उन्हें 2002 में ‘विमेन्स वर्ल्ड समिट फाउंडेशन’ द्वारा ‘ग्राम्य जीवन में महिलाओं का सृजनात्मक पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।

2023 में श्रीमती हिरबाईबेन लोबी को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

तेरहवां पुरस्कार | 2005

पुरस्कृता: श्रीमती चेतना गाला सिन्हा

सतारा, महाराष्ट्र

मुख्य अतिथि: डॉ. इंदु शहानी

अध्यक्ष: डॉ. मीनल कापड़िया

तेरहवां  पुरस्कार | 2005

श्रीमती चेतना गाला सिन्हा ने 1997 में सतारा में भारत का पहला महिला ग्रामीण बैंक ‘मन देशी महिला सहकारी बैंक’ स्थापित किया। महिलाओं द्वारा चलाया जाने वाला यह बैंक ग्रामीण वित्त सशक्तिकरण की अद्वितीय मिसाल है।

यह महिला प्रबंधित बैंक सूखा-प्रभावित क्षेत्रों में सूक्ष्म उद्यमिता को प्रोत्साहन देता है और आर्थिक स्वावलंबन के लिए सहायता प्रदान करता है।

वित्तीय सेवा के साथ-साथ ‘मन देशी’ महिला शिक्षा, कौशल विकास और संपत्ति अधिकार पर भी कार्य करता है। इसके अंतर्गत 300 से अधिक स्वयं-सहायता समूह शिक्षा और रोज़गार से जुड़े हैं।

2008 में महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें ‘नारी शक्ति पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।

वेबसाइट: https://manndeshifoundation.org

बारहवां पुरस्कार | 2004

पुरस्कृता: श्रीमती विजयमाला बी. देसाई

कोल्हापुर, महाराष्ट्र

मुख्य अतिथि: सुश्री अनु आगा

अध्यक्ष: श्रीमती भावना दोषी

बारहवां  पुरस्कार | 2004

श्रीमती विजयमाला देसाई ‘इंदिरा गांधी भारतीय महिला विकास सहकारी साखर कारखाना लि., कोल्हापुर’ की संस्थापक अध्यक्ष हैं — यह देश का पहला महिला प्रबंधित और महिला स्वामित्व वाला चीनी कारखाना है।

उनकी दृष्टि कृषि-उद्योग पर आधारित ग्रामीण समाज निर्माण की है। लगभग 3500 सदस्यों वाली यह सहकारी संस्था महिलाओं को व्यापार और उद्योग के क्षेत्र में सशक्त कर रही है।

वह भविष्य के लिए कई योजनाएँ लेकर चल रही हैं – कृषि सिंचाई, शैक्षणिक केंद्र, आयुर्वेदिक अनुसंधान अस्पताल, सहकारी बैंक और वन उत्पाद निर्माण इकाईयाँ – सभी महिलाओं द्वारा संचालित और स्वामित्व में हैं । इनका उद्देश्य महिला सशक्तिकरण और बाल-कल्याण है।

ग्यारहवां पुरस्कार | 2003

पुरस्कृता: सिस्टर वंदना दाभी

गुजरात

मुख्य अतिथि: श्री श्याम बेनेगल

अध्यक्ष: श्रीमती अमिता हरिभक्ति

ग्यारहवां पुरस्कार | 2003

सिस्टर वंदना दाभी की सेवा यात्रा बाल्यावस्था से शुरू हुई। ‘डॉटर्स ऑफ द क्रॉस’ संघ की सदस्या रूप में वह 1968 से गुजरात के आठ केंद्रों में आदिवासी और दलित समुदायों के लिए कार्यरत हैं।

आदिवासी महिलाओं के लिए महिला क्रेडिट को-ऑपरेटिव स्थापित करने का उनका प्रयास अभूतपूर्व रहा — जिससे उनकी आर्थिक और सामाजिक स्वतंत्रता को नया आयाम मिला।

बालवड़ियों और महिला ऋण सहकारी संस्थाएँ जैसे कार्यक्रमों से उन्होंने क्षेत्र में नई दिशा दी। इनमें से एक संस्था आज भी नर्मदा ज़िले की एकमात्र ‘आदिवासी महिला सहकारी संस्था’ है और दक्षिण गुजरात की दूसरी।

दसवाँ पुरस्कार | 2002

पुरस्कृता: श्रीमती कान्ता त्यागी

निमाड़, मध्य प्रदेश

मुख्य अतिथि: श्रीमती सुषमा स्वराज

अध्यक्ष: श्रीमती इंदिरा कोटक

दसवाँ पुरस्कार | 2002

श्रीमती कान्ता त्यागी का जन्म उत्तर प्रदेश के हापुड़ में एक समृद्ध ज़मींदार परिवार में हुआ। कम आयु में विधवा होने के बावजूद उन्होंने अपने दुःख को सेवा का संकल्प बना लिया और जीवन भर ग्रामीण महिलाओं और बच्चों की भलाई के लिए कार्य किया।

एक जनजातीय शिविर की यात्रा ने उन्हें उनकी दुर्दशा से रूबरू किया। इसी प्रेरणा से 1953 में उन्होंने मध्य प्रदेश के निमाड़ ज़िले के निवाली गाँव में ‘कस्तूरबा वनवासी आश्रम’ स्थापित किया, जहाँ आदिवासी लड़कियों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य की व्यवस्था की गई।

आश्रम की निर्देशक रूप में उन्होंने सिलाई-बुनाई विद्यालय और मसाले तथा पापड़ निर्माण की इकाइयाँ चलाईं। ग्रामीण सेवा के लिए उन्हें 1998 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

नौवां पुरस्कार | 2001

पुरस्कृता: श्रीमती कुंतला कुमारी आचार्य

ओडिशा

मुख्य अतिथि: सुश्री मेधा पाटकर

अध्यक्ष: श्रीमती रश्मि जॉली

नौवां पुरस्कार | 2001

श्रीमती कुंतला कुमारी आचार्य ने 40 वर्षों तक ‘नीलाचल नारी सेवा समिति’ की अध्यक्ष रूप में ग्रामीण विकास और महिला उद्यमिता को अपना जीवन कार्य बनाया। उनकी संस्था ने 1500 से अधिक वंचित महिलाओं को काथी उद्योग और हस्तकला जैसे क्षेत्रों में प्रशिक्षित कर आत्मनिर्भर बनाया।

इस पहल से महिलाओं की आय बढ़ी और आत्मनिर्भरता की भावना जगी। इसके परिणामस्वरूप 30 स्वयं-सहायता समूह और कई लघु उत्पादन केंद्र स्थापित हुए जो पर्यावरण-अनुकूल कार्य करते हैं। संस्था गरीब महिलाओं को आकर्षक ऍप्लिक कला का प्रशिक्षण भी देती है।

संस्था का कार्यक्षेत्र ओडिशा के सत्यबादी और पुरी सदर ब्लॉक के गाँवों तक फैला हुआ है।

आठवां पुरस्कार | 2000

पुरस्कृता: श्रीमती चिन्नापिल्लै

पुलिसेरी, तमिलनाडु

मुख्य अतिथि: श्रीमती सुमित्रा जी. कुलकर्णी

अध्यक्ष: श्रीमती गौरी पोहूमल

आठवां  पुरस्कार | 2000

श्रीमती चिन्नापिल्लै तमिलनाडु के मदुरै ज़िले के पुलिसेरी गाँव की भूमिहीन कृषि मज़दूर हैं। गरीबी के बावजूद उन्होंने महिलाओं को संगठित और सशक्त बनाया। ‘कोट्टनार’ नामक परंपरागत नेतृत्त्व भूमिका निभाते हुए वह मज़दूरों को सामूहिक खेती और साझा लाभ के लिए एकजुट करती हैं।

वे ‘कलंजीयम’ आंदोलन की संस्थापक कार्यकारी सदस्य हैं — यह संगठन आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु की 40,000 गरीब महिलाओं को जोड़ता है। उन्होंने 1994 में ‘वैगई वत्तरा कलंजीयम’ नामक संघ की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो ग्रामीण भारत की निर्धन महिलाओं के विकास हेतु कार्यरत है।

वेबसाइट: www.dhan.org

सातवां पुरस्कार | 1999
तिरुवनंतपुरम, केरल

पुरस्कृता: सिस्टर मैथिली

तिरुवनंतपुरम, केरल

मुख्य अतिथि: श्रीमती अनुराधा पौडवाल

अध्यक्ष: श्रीमती इरमा चिनाई

सातवां  पुरस्कार | 1999

सिस्टर मैथिली ‘दया’ और ‘हृदया’ नामक दो लघु इकाइयों की प्रेरक शक्ति हैं — ये इकाइयाँ जैव-चिकित्सीय उपकरण बनाती हैं और नैय्याटिंकरा की महिलाओं को रोजगार देती हैं।

हार्ट वॉल्व से लेकर उपयोग के बाद फेंक देने वाले मूत्र बैग, सेनेटरी नैपकिन और सर्जिकल कपड़ों तक – इन इकाइयों ने आर्थिक और सामाजिक विकास दोनों में योगदान दिया, जिससे ग्रामीण महिलाओं और उनके बच्चों का भविष्य बदला।

सिस्टर मैथिली ने ग्रामीण महिलाओं के पारंपरिक कार्यों से अलग राह चुनी। उनके प्रयास सामाजिक, आर्थिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक विकास के प्रति उनकी गहरी निष्ठा को दर्शाते हैं।

वेबसाइट: www.sistermythili.org

छठा पुरस्कार | 1998

पुरस्कृता: सुश्री मीना अग्रवाला

तेजपुर, असम

मुख्य अतिथि: श्रीमती इला भट्ट

अध्यक्ष: श्रीमती स्मिता त्रिवेदी

छठा पुरस्कार | 1998

सुश्री मीना अग्रवाला, ‘तेजपुर जिला महिला समिति’ की संस्थापक अध्यक्ष थीं। उन्होंने सोनितपुर ज़िले में महिलाओं और बच्चों के ग्रामीण उत्थान के लिए हाथकरघा, रेशम उत्पादन और स्वास्थ्य सेवाओं जैसे कई कार्यक्रम चलाए।

उनके नेतृत्व में 120 महिला समितियाँ सक्रिय रहीं और आर्थिक सशक्तिकरण का माध्यम बनीं। उन्होंने कानूनी शिकायतों का समाधान किया और 58 स्वास्थ्य शिविर आयोजित किए, जिनसे 5500 महिलाएँ लाभान्वित हुईं। उनके प्रयासों से 13 गाँव आत्मनिर्भर बने।

सुश्री मीना के मार्गदर्शन में समिति ने बाढ़, भूकंप और दंगों से पीड़ित लोगों की निस्वार्थ सहायता की।

पांचवा पुरस्कार | 1997

पुरस्कृता: डॉ. (श्रीमती) रागिनी प्रेम

गोविंदपुर, उत्तर प्रदेश

मुख्य अतिथि: डॉ. सरला बिड़ला

अध्यक्ष: श्रीमती भारती गांधी

पांचवा पुरस्कार | 1997

डॉ. रागिनी प्रेम ने ‘बनवासी सेवा आश्रम’ की स्थापना की और 25 से अधिक वर्षों तक दूरदराज़ इलाकों की आदिवासी महिलाओं और बच्चों के उत्थान के लिए कार्य किया। उन्होंने 1957 में एम.बी.बी.एस. और 1964 में उस्मानिया विश्वविद्यालय से एम.डी. की उपाधि प्राप्त की और 1968 में अपने पति के साथ यह आश्रम शुरू किया।

उन्होंने स्थानीय लोगों को परंपरागत उपचार पद्धतियों को आधुनिक चिकित्सा से जोड़ते हुए स्वास्थ्य शिक्षा दी। उनके कार्य से 400 गाँवों की लगभग 10,000 आदिवासी महिलाओं को लाभ मिला। उनका ध्यान आत्मनिर्भरता, प्राथमिक स्वास्थ्य, स्वच्छता और गृह उद्योगों को बढ़ावा देने पर था।

उन्होंने परिवार नियोजन, टीकाकरण और स्वास्थ्‍य-जागरूकता पर सरल पुस्तिकाएँ लिखीं

और ग्रामीण महिलाओं को शिक्षित किया। उनका समर्पण ग्रामीण उद्यमिता और स्वास्थ्य सुधार की दिशा में एक मिसाल है।

वेबसाइट: www.banwasisevaashram.in

चौथा पुरस्कार | 1996

पुरस्कृता: श्रीमती सरस्वती गोरा

Andra Pradesh

मुख्य अतिथि: श्रीमती उषा किरण

अध्यक्ष: श्रीमती नलिनी भगवती

चौथा पुरस्कार | 1996

श्रीमती सरस्वती गोरा ने अपना जीवन सामाजिक परिवर्तन को समर्पित किया। वह गांधीवादी विचारों की प्रबल समर्थक थीं — महिलाओं के सशक्तिकरण, सामाजिक समानता और आर्थिक उत्थान के लिए निरंतर कार्यरत रहीं। स्वतंत्रता संग्राम में वह जेल भी गईं और अस्पृश्यता तथा जातिवाद के विरोध में आवाज़ उठाई।

‘एथीस्ट सेंटर’ की संस्थापक के रूप में, उन्होंने सामाजिक कठिनाइयों से जूझती महिलाओं को परामर्श और आश्रय दिया। उन्होंने आर्थिक समानता की वकालत की और ज़मींदारी तथा जोगिनी प्रथा के विरोध में आंदोलन किया।

उन्होंने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अनेक प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए — मकान निर्माण से लेकर नर्सिंग, कालीन बुनाई, बाटिक और कंप्यूटर तक, हर क्षेत्र में कौशल विकास को बढ़ावा दिया।

वेबसाइट: www.atheistcentre.in

तीसरा पुरस्कार | 1995

पुरस्कृता: सुश्री अनुबेन गोविंदभाई ठक्कर

वडोदरा, गुजरात

मुख्य अतिथि: डॉ. स्नेहलता देशमुख

अध्यक्ष: सुश्री आरती कोटक

तीसरा पुरस्कार | 1995

सुश्री अनुबेन ठक्कर वडोदरा के ‘मुनि सेवा आश्रम’ की प्रेरक शक्ति थीं, जिसने दूरस्थ इलाकों के विकास को अपना लक्ष्य बनाया। उनके नेतृत्व में आश्रम ने सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए अनेक कार्य किए — 16 शिशु केन्द्र, विद्यालय, गृह उद्योग, अनाथालय, भगिनी मंदिर, वृद्धाश्रम, डेयरी, अस्पताल और ग्राम सामुदायिक केन्द्र।

उन्होंने ग्रामीण युवाओं को उद्यमिता की ओर प्रेरित किया — लुहारी, बढ़ईगीरी, राजमिस्त्री कार्य, पशुपालन और खेती जैसे कार्यों को बढ़ावा दिया।
यह आश्रम आध्यात्मिकता और सामाजिक-आर्थिक विकास का अद्भुत संगम है, जहाँ सतत कृषि और औषधीय पौधों की खेती जैसे नवाचारी कार्यक्रम संचालित हैं।

उनके प्रभावकारी योगदान को गुजरात सरकार, गांधीवादी संस्थाओं और वाणिज्य मंडलों द्वारा सम्मानित किया गया है।

वेबसाइट: www.greenashram.org

दूसरा पुरस्कार | 1994

पुरस्कृता: श्रीमती एस. जी. सुशीलम्मा

बेंगलुरु, कर्नाटक

मुख्य अतिथि: डॉ. (श्रीमती) किरण बेदी

अध्यक्ष: श्रीमती दिव्या मिरानी

दूसरा पुरस्कार | 1994

श्रीमती एस. जी. सुशीलम्मा ‘सुमंगली सेवा आश्रम’ की संस्थापक हैं — यह संस्था महिलाओं को बुनाई, सिलाई, बुनकरी और अन्य आयवर्धक कार्यों का प्रशिक्षण देती है। उद्देश्य है महिलाओं को रोजगार और उद्यमिता के अवसर प्रदान करना।

अब तक लगभग 2000 महिलाएँ इस आश्रम से लाभान्वित हो चुकी हैं। आर्थिक स्वावलंबन के महत्व को समझते हुए, उन्होंने महिलाओं की उत्पादक गतिविधियों में भागीदारी बढ़ाने के लिए कई कार्यक्रम आरंभ किए।

इसमें गृह-उद्योगों में आत्मरोज़गार के अवसर देना और स्थानीय बाज़ार विकसित करना शामिल है।

एकता की शक्ति को समझते हुए, उन्होंने गाँवों और कस्बों में महिला मंडलों की स्थापना को प्रोत्साहित किया — उनका विश्वास है कि संगठित रूप से सीखने और व्यवसाय चलाने से महिलाएँ अधिक सफल होंगी।

वेबसाइट: www.sumangalisevaashrama.org

पहला पुरस्कार | 1993

पुरस्कृता: स्वर्गीय श्रीमती अनुसूया लिमये

महाराष्ट्र

मुख्य अतिथि: श्री राजमोहन गाँधी

अध्यक्ष: श्रीमती वृंदा खटाऊ

पहला पुरस्कार | 1993

अनुताई लिमये शिक्षिका, स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, राजनीतिक कार्यकर्ता और महिलाओं के लिए ग्रामीण उद्योग की प्रेरक थीं। उन्होंने सहकारी संस्थाओं और सामुदायिक केन्द्रों के माध्यम से सेवा का मार्ग चुना।

अनुताई ने महाराष्ट्र के गाँवों में आर्थिक रूप से पिछड़ी महिलाओं के जीवन में परिवर्तन लाने का कार्य किया। समाज की कठिनाइयों को उन्होंने समग्र दृष्टि से देखा और समाधान खोजे।

समाजवादी महिला सभा की अध्यक्ष के रूप में, जो महाराष्ट्र में 40 शाखाओं और 5000 सदस्यों वाला संगठन था, उन्होंने अल्पशिक्षित और कम आय वाली महिलाओं को सशक्त बनाने का कार्य किया।

उनका योगदान श्रमसहकार महिला संघ तक फैला — यह औद्योगिक सहकारी संस्था 350 महिलाओं को फिलिप्स इंडिया और वनाज़ लिमिटेड के लिए पुर्ज़े बनाने का प्रशिक्षण और रोज़गार देती थी। इस संघ ने न केवल रोजगार दिया, बल्कि परिवारों की आय भी बढ़ाई।

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